जिस इंसान ने कृष्ण भजन के द्वारा अपने सादगी भरे जीवन को भगवान श्री कृष्ण के लिए न्यौछाबर कर दिया, वह इंसान जिसने आदमी के मन में पहुंचकर, दिल में उतर कर, उसे अपना खुद दिखा दिया, उनका गोलोक गमन हो चुका है।
यह बहुत ही दुखद है और सबसे बड़ी दुख की बात यह है कि आज यह बात मुझे पता चली कि 8 नवंबर 2018 को उनका स्वर्गवास हुआ।
गंभीर और सोचने कि बात है जो अपने भजनों के द्वारा लोगों को उनके अंतर्मन तक ले जाता है,
एक इंसान को उसके अंदर बैठे भगवान की याद दिलाने वाला विनोद अग्रवाल अब हमारे बीच नहीं रहा।
उनके भजन लगातार सुनते आया हूं और उनके निधन के बाद भी सुनता रहा, लेकिन मुझे ज़रा भी एहसास नहीं हुआ कि वह अब इस दुनिया में नहीं है। अध्यात्म की एक प्रमुख कड़ी प्रेम है और उस कड़ी को पकड़कर विनोद अग्रवाल ने जीवनभर सिर्फ कृष्ण भजन को, गोपियों के विरह को कृष्ण भक्त के बीच कृष्ण के प्रेम को जिंदा रखा।
यह सौभाग्य की बात है कि उनके भजनों की रिकॉर्डिंग्स हमारे पास हैं हम उसे कभी भी सुन सकते हैं, लेकिन उस पवित्र व्यक्तित्व को कभी वापस नहीं ला सकते।
मेरा एक सपना था कि मैं उन्हें एक बार अपने कस्बे गुलाबगंज में लाऊं और उनके भजनों का कार्यक्रम यहां पर रखूं, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया।
कहीं ना कहीं मेरे जैसे कई और लोग भी हैं, जिनके सपने टूटे हैं। अग्रवाल जी के जाने से प्रेम रस, वात्सल्य, भक्ति का एक दौर खत्म हुआ है। वे अमर रहेंगे क्योंकि उन्होंने अपना जीवन कृष्ण भक्ति के द्वारा सफल बनाया है, जैसे मीरा ने कृष्ण को प्रेम किया ठीक वैसे ही विनोद ने भी किया।
रसिक चाहे कहीं के भी हो वृंदावन के बरसाने के या फिर देश के किसी भी कोने के वह सब आपको हमेशा याद करेंगे, आपने जो दिया वह शायद कोई नहीं दे पाता ना दे पाएगा.
आप हर अध्यात्म प्रेमी, कीर्तन प्रेमी, कृष्ण प्रेमी, विरह प्रेमी और हर एक इंसान के लिए जो प्रेम को समझते हैं, के लिए मीरा की अमोलक भक्ति और प्रेम के जैसे हैं, आप जहां भी रहे अपने छंद, शेर और भजन के द्वारा यूं ही कृष्ण भक्ति की गंगा बहाते रहें।
आप मेरे लिए एक एहसाह की तरह थे और जीवनभर रहेंगे, आपने जो मुझे दिया है उसका कोई मोल नहीं है जो मैं चुका सकूँ, जीवनभर कर्जदार रहूँगा जैसे कि आप भगवान श्री कृष्णा के रहे।
आपकी कमी का एहसाह हमेशा होता रहेगा।
Monday, 26 November 2018
तुमने बताई विरह की परिभाषा, प्रेम का अर्थ
Saturday, 18 August 2018
मुश्किल है शब्दों में जान फूंकने वाले को शब्दों में बांधना
रूह देखी है कि कभी, रूह को महसूस किया है... 'महसूस' जी हां
इसी एक शब्द को जिया है और कलम के रास्ते सफों पर उतारा भी है, रूमानी
दुनिया के बेताज बादशाह गुलजार ने। अविभाजित भारत में जन्में और बंटवारा भी
देखा और उसके दर्द को सहन किया, दुनिया भी देखी है और हर एक पल को महसूस
कर अपनी नज्म, गीत, गजल और कहानियों में बखूबी उतारा और वो भी ऐसा कि कोई
दूसरा कर ही नहीं सकता।
गीतकार के अलावा कवि,
पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार गुलजार जब भी अपनी कोई रचना खुद
पड़ते हैं तो लगता है कि कोई शब्दों में जान फूंक रहा हो, झिलमिलाती सांझ
की ठंडी हवा में मिठास घोल रहा हो, हर एक नज्म ऐसे चमकती है जैसे किसी
दरिया के पानी पर सूरज की धूप पड़ी हो। गुलजार ही हैं जो जिंदगी को समझा
सकते हैं कि तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूं मैं... तेरे मासूम सवालों
से परेशान हूं मैं... गुलजार के नाम से दुनिया में मशहूर सम्पूर्ण सिंह
कालरा को देश ने पद्म भूषण से तो दुनिया ने ऑस्कर अवार्ड से नवाजा है। इसके
अलावा ग्रैमी अवार्ड, साहित्य अकादमी पुरस्कार,दादा साहब फालके और कई बार
फिल्म फेयर अवार्ड भी मिल चुके हैं।
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Photo - Google |
गुलजार
साहब से एक बार जब पूछा गया कि सिनेमा की दुनिया में इतने लंबे समय तक
जमें रहने का राज क्या है तब उस दिन जो गुलजार ने बोला वो सिर्फ फिल्मी
दुनिया में ही नहीं असल जिंदगी में टिके रहने का राज जैसा लगा, उन्होंने
कहा कि इसकी वजह तो मैं ही हूं...ढीट हूं, रुक नहीं रहा हूं। बाकी हवाओं पे
लिख दो हवाओं के नाम हो या कोई और जितने भी झूठ मिलते रहे उन्हें बोलता
रहा और आगे भी मिलते रहे तो बोलता रहूंगा। कल्पनाएं गुलजार की जब तक रहेंगी
उन्हें बयां करता रहूंगा।
महज तीन लाइनों में
सब कुछ कह देने वाली त्रिवेणी के सृजक गुलजार ने सिनेमा जगत को मेरे अपने,
आनंद, आंधी, मौसम, मिर्जा गाबिल और नमकीन जैसी फिल्में दीं और साथ ही कई
सारे सदाबहार गीत जो आज भी हर दिल में बसते हैं और लोग इन्हें गुनगुनाते भी
हैं। चाहे आंखों में उतरकर बहके हुए अंदाज को बयां करना हो या फिर
चप्पा-चप्पा चरखा चलाना हो हर एक पल को महसूस कर उसे लिखने की अदा ने
फिल्मी दुनिया में गुलजार के गीतों को अलग ही मिली है।
फिल्म
निर्माता विमल रॉय को गुलजार अपना गुरू मानते हैं। विमल रॉय से जब गुलजार
मिलने गए तब तक वे फिल्मों में नहीं जाना चाहते थे, वे सिर्फ साहित्य से ही
जुड़े रहना चाहते थे लेकिन, जब विमल दा ने गाना लिखने को कहा तो गुलजार ने
मेरा गोरा अंग लई ले मोहे श्याम रंग दई दे...लिखा लेकिन, सचिन देव बर्मन
ने एक नए राइटर से गाना लिखवाना ठीक नहीं समझा, इस बात का विमल दा को बहुत
खेद हुआ कि इतना अच्छा गाना लिखा है फिर भी फिल्म में नहीं ले रहे हैं।
इसके बाद विमल दा ने गुलजार को अपनी नई फिल्म के लिए बतौर असिस्टेंट काम
करने का ऑफर दे दिया और कहा कि 'तुम्हे अच्छा लगेगा लेकिन, तुम वापस उस
गैराज में जाकर अपना समय खराब नहीं करोगे', इतना सुनकर गुलजार रो पड़े
क्योंकि यह अपनेपन वाली बात उनके खानदान में भी किसी ने नहीं कही थी। और आज
भी जब इस किस्से को कहते हैं तो उनका गला भर आता है।
राह
पे रहते हैं यादों पे बसर करते हैं, खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते
हैं... गुलजार की फिल्म 'नमकीन'में उनका ही लिखा ये गाना एक ड्राइवर की
जिंदगी को दिखाता है लेकिन, इस गाने को हम अपनी जिंदगी में जीने लगें तो
शायद हर एक पल को महसूस कर पाएं और उसे जी सकें। ऐसे ही कई गानों की लंबी
फेहरिस्त है, जिनका जिक्र एक लेख में करना मुश्किल है। अपनी नज्मों में
जिंदगी और उस जिंदगी को परदे पर उकेरने वाले सम्पूर्ण सिंह कालरा मुंबई में
मोटर गैराज में धीरे-धीरे 'गुलजार' बनता रहा और आज न जाने कितने टूटे हुए
दिलों की मरम्मत कर रहा है।
नज्म लिखना और फिर
उससे बेइंतहा मोहब्बत करना और उस मोहब्बत के लिए फिर एक और नज्म लिख देना,
गुलजार साहब का ये अंदाज ही तो है, जिसने उन्हें सदाबहार बना दिया है।
जिंदगी की दौड़ में अगर ऑस्कर जीतना हैं तो जिंद शामियाने के तले और जरी वाले नीले आसमां के तले जय हो तो करना ही पड़ेगा।
गुलजार साहब के 84वें जन्मदिन पर उनके लिए मेरी एक कोशिश
Thursday, 12 April 2018
यह सब देखकर तुम दुखी मत होना... प्रीति
प्रीति रघुवंशी मामले में जहां उसकी मौत का जिम्मेदार मंत्री रामपाल को बताया जा रहा है तो वहीं प्रीति के परिजन भी इसे एक तमाशा बनाने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं, कभी खबरें आती हैं कि प्रीति का भाई लापता है तो कहीं पता चलता है कि वह अपनी मर्जी से घर छोड़कर गया है। परिजन आरोप लगाते हैं कि उसे किडनैप कराया है और पुलिस उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं कर रही है। प्रीति के परिजन जिन लोगों को उसकी मौत का जिम्मेदार बता रहे हैं और उसे न्याय दिलाने की बात तो कर रहे हैं, लेकिन यह सब देखकर अब सिर्फ तमाशा ही नजर आ रहा है।
कभी प्रीति का भाई गुम हो जाता है तो परिजन पुलिस द्वारा उसके लापता होने की रिपोर्ट न लिखने की बात करते हैं। फिर प्रीति का भाई खुद थाने पहुंचकर अपनी मानसिक स्थिति ठीक न होने की बात कहता है, थाने में आकर कहता है कि घरवालों से दूर जाकर कुछ वक्त शांति से बिताना चाहता हूं। अरे शांति से वक्त बिताने वाले... ये बता दो कि ऐसी मुश्किल घड़ी में परिवार का साथ छोड़कर कौन सा बेटा मन की शांति के लिए इधर-उधर घूमता है। वहीं प्रदेश के प्रमुख दल इस मामल में जमकर राजनीति करने में लगे हैं। चिंता करने की बात है, बेटी को पढ़ाने, आगे बढ़ने की बात करने वाले लोग इस बेटी के बारे में कुछ भी कहने से सिर्फ इसलिए कतरा रहे हैं, क्योंकि वह प्रदेश की सत्ताधारी सरकार के मंत्री की बहू थी।
लेकिन, प्रीति तुम यह सब देखकर हैरान मत होना, समाज के इस तरह के रवैये से तुम खुद भी अच्छी तरह से परिचित थीं। गलती तुम्हारी नहीं कि तुमने एक नेता जी के बेटे पर भरोसा किया और प्रेम विवाह किया। भरोसा तो लोग अपने रोम पर भी नहीं करते, लेकिन तुमने एक मंत्री के बेटे से प्रेम करके बड़ी हिम्मत दिखाई। तुम आज अपनी मौत पर किए जा रहे इस तमाशे पर दुखी मत होना। तुम बिल्कुल भी मत सोचना कि बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने की बात करने वाले, उनके सर पर हाथ रखकर सेल्फी लेने वाले, उनकी पूजा करने वाले तुम्हारे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं, जबकि तुम तो इस दुनिया में हो ही नहीं। परेशान मत होना कि तुम्हारी मौत पर इस तरह राजनीति की जा रही है। तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए तुम्हारे परिजनों ने सब कुछ किया, जो हर किसी के परिवार वाले करते है, पर जो अब कर रहे हैं, उस पर अफसोस तो है, लेकिन तुम दुखी मत होना प्रीति... तुमने अपनी हिम्मत दिखाई है, नेता जी के बेटा ही तुम्हारी हिम्मत के आगे बोना साबित हो गया, इसलिए तुम दुखी मत होना प्रीति।
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